यादे !!!
कल मेरे छोटे भाई समान मानव शिवी मेहता ने मुझे इनबॉक्स कुछ लिखा कि दीदी देखो कैसा लिखा हम दोनों अक्सर इस तरह अपना लिखा एक दुसरे को दिखाते रहते हैं
फिर क्या जुगलबंदी हुयी आपकी नजर पेश हैं ..............
~~
तुमने सुना तो होगा
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
फड़फड़ा उठता है
सोया हुआ शजर
बासी से कुछ मुरझाये हुए से पत्ते
छोड़ देते हैं साथ
दिये कई तोड़ देते हैं दम
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
बर्बाद हो जाता है सब कुछ
इक रोज़ इक ऐसे ही
तेज़ हवा में
बुझ गया था -
मेरा भी इक रिश्ता....!! मानव मेहता शिवी
~~~~~~~~~~~~~~~~
न तेज हवा चली थी /
न कोई तूफ़ान आया था /
न हमने कोई आसमा सर पर उठाया था /
हम जानते थे ना /
हमारा रिश्ता नही पसंद आएगा /
हमारे घर के ठेकेदारों को /
जिनके लिय अपने वजूद का होना लाजिमी था /
हमारी कोमल भावनाओ से इतर /
और हम दोनों ने सिसक कर /
भीतर भीतर चुपके से /
तोड़ दिया था अपना सब कुछ /
बिना एक भी लफ्ज़ बोले /
मैंने तेरा पहना कुरता मुठी मैं दबा कर /
तुमने मेरी लाल चुन्नी सितारों वाली /
जो आज भी सहेजी हैं दोनों ने /
अपने अपने कोने की अलमारी के /
भीतर वाले कोने में........... नीलिमा शर्मा निविया
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
लगभग हर रात
अपनी अलमारी खोल कर
देखता हूँ उस
लाल रंग के
सितारों वाले दुप्पट्टे को
जो तेरी इक आखरी सौगात
मेरे पास छोड़ गए थे तुम
तुम नहीं मगर तुम्हारा एहसास
आज भी उस दुप्पट्टे में
वाबस्ता है...
मैं आज भी इसमें लिपटी हुई
मेरी मोहब्बत को देखता हूँ...
मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
ज़िन्दगी घुल सी गयी है लाल रंग में मेरी... Manav Shivi Mehtamanavsir.blogspot.in
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तुम्हारा वोह सफ़ेद कुरता
आज भी रखा हैं कोने में अलमारी के
जहाँ मैं सहेजती हूँ यादे अपनी
और जब अकेली होती हूँ न
अपने इस कोहबर में , तो
पहन कर वोह सफ़ेद कुरता
महसूस करती हूँ
तुम्हे अपने बहुत करीब
तुम्हारी आखिरी सफ़ेद निशानी
जो छीन कर ली थी मैंने तुमसे
उसमी वोह अहसास भी जुड़े हैं
तेरे - मेरे
जो हमने जिए तो नही
फिर भी कई बार महसूस जरुर किये हैं
सुनो शोना
अब मेरी जिन्दगी पहले जैसे
रंगीन नही रही
शांत रहना सीख लिया मैंने
तेरे कुरते के सफ़ेद रंग की तरह .................... नीलिमा शर्मा
कृपया बताये ......... हम ने लफ्जों से कैसे रंग भरे हैं इस शब्द चित्र मैं ....................
फिर क्या जुगलबंदी हुयी आपकी नजर पेश हैं ..............
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तुमने सुना तो होगा
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
फड़फड़ा उठता है
सोया हुआ शजर
बासी से कुछ मुरझाये हुए से पत्ते
छोड़ देते हैं साथ
दिये कई तोड़ देते हैं दम
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
बर्बाद हो जाता है सब कुछ
इक रोज़ इक ऐसे ही
तेज़ हवा में
बुझ गया था -
मेरा भी इक रिश्ता....!! मानव मेहता शिवी
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न तेज हवा चली थी /
न कोई तूफ़ान आया था /
न हमने कोई आसमा सर पर उठाया था /
हम जानते थे ना /
हमारा रिश्ता नही पसंद आएगा /
हमारे घर के ठेकेदारों को /
जिनके लिय अपने वजूद का होना लाजिमी था /
हमारी कोमल भावनाओ से इतर /
और हम दोनों ने सिसक कर /
भीतर भीतर चुपके से /
तोड़ दिया था अपना सब कुछ /
बिना एक भी लफ्ज़ बोले /
मैंने तेरा पहना कुरता मुठी मैं दबा कर /
तुमने मेरी लाल चुन्नी सितारों वाली /
जो आज भी सहेजी हैं दोनों ने /
अपने अपने कोने की अलमारी के /
भीतर वाले कोने में........... नीलिमा शर्मा निविया
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मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
लगभग हर रात
अपनी अलमारी खोल कर
देखता हूँ उस
लाल रंग के
सितारों वाले दुप्पट्टे को
जो तेरी इक आखरी सौगात
मेरे पास छोड़ गए थे तुम
तुम नहीं मगर तुम्हारा एहसास
आज भी उस दुप्पट्टे में
वाबस्ता है...
मैं आज भी इसमें लिपटी हुई
मेरी मोहब्बत को देखता हूँ...
मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
ज़िन्दगी घुल सी गयी है लाल रंग में मेरी... Manav Shivi Mehtamanavsir.blogspot.in
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तुम्हारा वोह सफ़ेद कुरता
आज भी रखा हैं कोने में अलमारी के
जहाँ मैं सहेजती हूँ यादे अपनी
और जब अकेली होती हूँ न
अपने इस कोहबर में , तो
पहन कर वोह सफ़ेद कुरता
महसूस करती हूँ
तुम्हे अपने बहुत करीब
तुम्हारी आखिरी सफ़ेद निशानी
जो छीन कर ली थी मैंने तुमसे
उसमी वोह अहसास भी जुड़े हैं
तेरे - मेरे
जो हमने जिए तो नही
फिर भी कई बार महसूस जरुर किये हैं
सुनो शोना
अब मेरी जिन्दगी पहले जैसे
रंगीन नही रही
शांत रहना सीख लिया मैंने
तेरे कुरते के सफ़ेद रंग की तरह .................... नीलिमा शर्मा
कृपया बताये ......... हम ने लफ्जों से कैसे रंग भरे हैं इस शब्द चित्र मैं ....................
लफ्ज़ लफ्ज़ कशिश है
जवाब देंहटाएंकुछ रंग हैं प्यार के
तो कुछ श्वेत रंग शांत मन के
यादों का जल कभी ठहरा हुआ
तो कहीं कुछ कम्पन
....
लफ़्ज़ों का हुआ आदान-प्रदान
पर दो किनारों सी है पहचान
शुक्रिया रश्मि जी
हटाएंआधार एक है बिछुड़े हुए प्रेमी की भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंलेकिन रंग अलग अलग है ,
दो इंसानी सोच अलग ही तो होती एक विषय वस्तु पर
शुक्रिया विभा जी
हटाएं:) सुन्दर सुन्दर सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कुलदीप जी
हटाएंjabardast jugalbandi. accha hai
जवाब देंहटाएंआभार सक्सेना जी
हटाएंदिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ .... हर शब्द में प्यार , अपनापन और एक अजब सी बचैनी झलक रही है ... बधाई आपको :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गुंजन
हटाएंबहुत भावप्रवण जुगलबंदी ,नीलिमा जी.दिल को छूने वाली पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंshukriyaa rajeev ji
हटाएंबहुत सुंदर ...प्रभावपूर्ण
जवाब देंहटाएंshukriyaa Monica ji
हटाएंवाह..... बहुत सुन्दर लिखा है आपने दी।
जवाब देंहटाएंतुस्सीं ग्रेट हो..... :)
http://manavsir.blogspot.in/2013/11/blog-post_19.html?m=1
हटाएंमानव तुम हमेशा से अच्छा लिखते आये हो मुझे कई बार तुमसे लिखने कि प्रेरणा मिलती हैं बहुत उम्दा लिखा तुमने केई मैं अपने को रोक नही पायी और अचानक यह सब लिखा गया .... शुक्रिया इस तरह काव्य सृजन मैं साथ देने का ......... ईश्वर आपकी लेखनी में सार्थक लफ्ज़ो का अधिकतम समावेश करे .अमीन
हटाएंआभार राजीव जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जुगलबंदी हुई है ..
जवाब देंहटाएंकुछ शब्द रह गए थे दरिया किनारे,
जवाब देंहटाएंकुछ यादें अब भी बाबस्ता देखा करती हैं,
तेरा रास्ता,
और उग आता है दूबों का जंगल,
निर्जनता के झींगुरों की आवाज़ में,
अब भी यादें बिखरी पड़ी हैं,
जो रातरानी बनकर खनक पड़ती हैं,
रातों में,
और मैं रात भर,
देखा करता हूँ,
वह पतली सी लीख,
जिसके सहारे तुम चली गयी थी,
कभी न लौटने के लिए,
लेकिन कहाँ से लाऊं मैं वह मन,
जो रोक सके आँखों को जगने से,
और न देखे तुम्हारे सपने,
ना सुने तुम्हारी आहट,
और निकाल कर फेंक दे तुम्हारी सारी यादें,
और एक चिता बनाकर जला सके तुमको, तुम्हारी यादों को,
ख़ाक में बदलने के लिए,
लेकिन सुना है,
"खाक के धुएं यादों से लिपट कर रोज़ रोते हैं।"
- नीरज
अद्भुत, आपकी लफ्ज़े कहीं गहरे घर करती हैं, उपरोक्त कविता उन लफ़्ज़ों कि ही उपज है। हार्दिक आभार।
अरे वाह!!! इतना सुन्दर सृजन नीरज ...........मेरा लिखना सर्ठाक हुआ जब आपने उसको अपने शब्दों से सम्बंधित पाया .....तहे दिल से आभारी ..........बहुत उम्दा लिखा आपने
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