सपने झूठे होते हैं सुबह के.........
माँ !!
रात मैंने एक सपना देखा
तुम हो !! आँगन में सोयी सी
और पास तेरे एक सफ़ेद कपडे में बैठी
औरत जोरो से हंस रही हैं बेहताशा
और मैं गुस्से से देख रही हूँ उसकी और
और कहना चाह रही हूँ जैसे
चुप रहो ना ... माँ सो रही हैं
पर तुम मुझे इशारे से कहती हो
चुप रहने को
और मैं कुढ़ रही हूँ
तुम्हारे ही दिए गये
अपने नीले दुप्पटे को
बार बार उंगुली पर लपेट'ते हुए
और अचानक मेरा रुदन और
तुम्हारी सिसकियाँ एकाकार हो जाती हैं
और उसकी आवाज़ में कही दब जाती हैं
उस सफ़ेद कपड़ो वाली की हंसी
और मैं ...............
लिपट जाती हूँ तुमसे कसकर
कभी ना अलग होने के लिय
और अचानक आँख खुल जाती हैं मेरी
भोर का सूरज लालिमा लिय
आने को तत्पर आसमान में
और मैं पसीने से तरबतर
इस सर्दी में
आँखों के कोरो से बहते आंसुओ के संग !!
माँ !! सुनो ना ...तुम ठीक हो ना
प्लीज़ कह दो
सपने झूठे होते हैं
सुबह के................नीलिमा शर्मा निविया
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पाता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती दिखायी दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
कभी -कभी अपनों के प्रति प्यार की अधिकता ' प्रिय ' को खोने का डर बनकर अचेतन मन में रहती है ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर ! नीलिमा ...
shukriyaa pratibha
हटाएंसपने सच हों या झूठ - मन की मजबूती सबकुछ पीछे धकेल देती है (एक अव्यक्त भय के साथ)!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी
हटाएंमाँ !! सुनो ना ...तुम ठीक हो ना
जवाब देंहटाएंप्लीज़ कह दो
सपने झूठे होते हैं
सुबह के....
वाह!!! बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है--
आशाओं की डिभरी ----------
शुक्रिया ज्योति जी
हटाएंबहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजीव जी
हटाएंमाँ !! सुनो ना ...तुम ठीक हो ना
जवाब देंहटाएंप्लीज़ कह दो
सपने झूठे होते हैं
सुबह के....
भावमय करते शब्द ...
शुक्रिया सदा जी
हटाएंअचेतन मन में सुप्त भावनाए -स्वप्न -बहुत सुन्दर अभिवक्ति
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट तुम
शुक्रिया कालिपद जी
हटाएंअंतस को छूती बहुत भावमयी रचना...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
आभार राजीव जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
अवचेतन से चेतन को एकाकार करती बहुत अच्छी कविता जिसमें भावनाओं का आवेग, कुछ शब्दों के स्थान परिवर्तन से बढ़ाया जा सकता है | कविता में यथोचित स्थान पर कौमा, पूर्णविराम जैसे प्रतिक चिन्हों का प्रयोग कर इसको त्रुटिहीन बनाने की कोशिश की जानी चाहिए, जय हो जय हो
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विवेक ऐसे छोटी छोटी बातो की तरफ ध्यान दलाने का ......भविष्य में ख्याल रखूंगी शुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया रचना के साथ साथ प्रस्तुति भी , आदरणीय नीलिमा जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: अपने ब्लॉग या वेबसाइट की कीमत जाने व खरीदें बेचें !
शुक्रिया आशीष जी
हटाएंकाश की सपने झूठे होते सुबह के... सूंदर मार्मिक रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरज जी
हटाएंबहुत बढ़िया रचना... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी