पुराने ख़त



आज सुबह से व्यस्त हूँ 
पुरानी अलमारी में 
रखे खतो को संजोने में 
कितनी खुशबुए मेरे इर्द गिर्द 
सम्मोहित कर रही हैं मुझे 
वोह प्यार का पहला ख़त 
मुझे मिलने के बाद 


पहली ही रात को लिखा
और उस दिन बजता
आल इंडिया रेडियो पर गाना
" कभी आर कभी पार लगा तीरे नजर"
मेरे जन्मदिन पर लिखे अनेको ख़त
जिसमे से सिर्फ एक पोस्ट किया था मुझे
और अंत में फिर से आल इंडिया रेडियो
फिर से साथ था तुम्हारे लफ्जों में
"तुम जो मिल गये हो तो यह लगता हैं "
वोह विवाह पूर्व का करवाचौथ
और तुम्हारा ख़त
अगले साल हम दोनों साथ होंगे इस दिन
और तुम मेरे लिय सजोगी उस दिन
और इस बार भी अंतिम लाइन
आल इंडिया रेडियो के सौजन्य से
" मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार "

ख़त दर ख़त मैं सुनती थी गाने तुम्हारे साथ
ख़त चाहे ४ दिन बाद मिलता
लेकिन गाना उस वक़्त बजता मेरे जहन में
आखिरी ख़त जो मुझे मिला था
विवाह से ३ दिन पहले
लबरेज़ था तुम्हारे प्यार से
अंतहीन प्रतीक्षा से गुजरे विरह को बतलाता हुआ
और तब आप का आल इंडिया रेडियो गा रहा था
' वादा करले साजना , तेरे बिना मैं न रहू मेरे बिना तू न रहे "

आज भी खतो को पढ़ते हुए
वही स्वर सुन रही हूँ
वही धुन बज रही हैं
वैसे ही थिरक रही हैं मेरी धड़कन

सुनो ना
२५ साल पुराने ख़त आज भी इतने ताजा से क्यों हैं























आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 08/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. यादें ऐसे ही गुदगुदाती हैं...सहेजना, महसूस करना आना चाहिए। ..अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं इधर ये कविता पढ़ रहा हूँ और उधर पड़ोस से गाने की आवाज़ आ रही है -
    तेरा ख़त लेके सनम,
    पाँव कहीं रखते हैं हम
    और कहीं पड़ते हैं क़दम!!
    प्यारी कविता!!

    जवाब देंहटाएं

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