मुझे उड़ना हैं बहुत दूर तलक
क्या मैं शब्दों की जादूगर हूँ !!!
क्या मैं अग्रसर हूँ
लेखिका बन जाने की दिशा में !!
ठिठकी हूँ मैं लफ्जों के द्वार पर
अक्सर मिलते हैं जब मुझे
कमेंट अपने लिखे शब्दों के जोड़ पर
तब सोचती हूँ मैं हैरान सी
मैंने तो ऐसा कुछ भी नही लिखा
की इतना आगे बढ़कर उनको सराहा जाए
मेरे लिखे शब्दों को मेरे सर पर चदाया जाए
मैं बस अपने लिय अपने मन का लिखती हूँ
कुछ खुशिया/ दर्द आस- पास से चुनती हूँ
लफ्जों का लिबास पहना कर करीने से सहेज लेती हूँ
सहेजने की मेरी भी एक सीमा हैं मेरा एक अपना तरीका
पर कैसे कह देते कुछ लोग स्तर हीन ही लिखती हूँ
मैं नीलिमा हूँ और मैं स्वतंत्र आकाश की मालकिन भी
अपने हिस्से के सितारे चुनकर स्वप्निल स्नेहिल दुनिया रचती हूँ
कोई सितारा चमक उठ'ता हैं तो अच्छा लगता हैं सबका सरहाना
कोई बुझा सितारा जब आता हैं झोली में तो अजीब लगता हैं वाह सुन इतराना
मैं मैं हूँ बस अपने लफ्जों भावो की स्वामिनी
मुझे उड़ना हैं अपने आकाश की परिधि में
सच जानकार आपने पंखो की परवाज़ का
मुझे झूठ न बताओ मुझसे सच न छुपाओ
मेरी पंखो की उडान अभी कहाँ तक हैं
और उड़ने का हौसला कहा तक हो
इसका मुझे आभास दिलाओ
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मुझे उड़ना हैं बहुत दूर तलक
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
स्वयं को ऐसा ही लगता है .... आप लेखन के आकाश पर खूब उंचा उड़ें यही कामना है .
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