माँ तो माँ होती हैं
उम्र के इस मोड़ पर
भरे पूरे परिवार में
तीन मंजिले मकान में
बीमारियों से भरी
फिर भी चलती फिरती
कितनी अकेली होती हैं ....
हँसती हैं आज भी
ठहाका लागाकर
बात - बेबात पर
भीतर के दर्द को छिपाकर
और अन्दर अन्दर
कैसे आंसुओ को पीती हैं ...
कुछ तड़पती हैं
कभी बरसती हैं
नए ज़माने की रंगत को
धुंधलाती आँखों से
बूढ़े पति के कमीज में
जब बटन पिरोती हैं ..........
झुक गयी अपनी कमर हो
ढीले पढ़े पति के कंधो हो
दवाइयों की खुराक से
तीन वक़्त का भोजन करती
माँ बेटी की सिसकिया सुन
खुद को अन्दर तक मसोसती हैं ...
घर में चाहे तीन कार हो
और रहते हो पाँच पुरुष
पैसे की रेल पेल हो
या विलासिता के भीड़
अमीर माँ अक्सर रिक्शा में
अपना और पति का बोझ ढोती हैं ......
मज़बूरी होकर बुदापे में
खुद रोटी को तरसते हुए भी
मुठ्ठी में पुराने नोट लेकर
मोतिया बिन्द वाली आँखों से
बेटी नाती के आने की
हर पल बाट जोहती हैं
माँ तो माँ होती हैं
पर अपनी माँ कब
सबकी माँ होती हैं
बेटे भी पराये होकर
करते मर जाने की दुआ
उस पल बेटी भी माँ संग
खून क आंसू रोती हैं ..
सब कुछ होता हैं बच्चो का
पर आज अभी सब करते हैं
क्यों नही यह मरते हैं
माँ पैसे से अमीर भी होकर
अंतिम दिनों मैं क्यों
बच्चो के प्यार से गरीब होती हैं .
उम्र के इस मोड़ पर
भरे पूरे परिवार में
तीन मंजिले मकान में
बीमारियों से भरी
फिर भी चलती फिरती
कितनी अकेली होती हैं ....
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
आपकी लिखी रचना बुधवार 03 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
माँ की बीमारी की वज़ह से ऑनलाइन आना कम हो रहा हैं सॉरी आपकी पोस्ट तक नही आपई ........ शुक्रिया
हटाएंबहुत मार्मिक पर यही कहानी रिपीट हो रही है !
जवाब देंहटाएंगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
शुक्रिया कालीपद जी
हटाएंमार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आशा जी
हटाएंsatya .hai katu satya .....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निशा जी
हटाएंकाश किसी भी माँ को ऐसे दिन न देखने पड़े जैसा आपने वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंवैसे यह कविता उन सभी को खटकेगी जो अपनी माँ का भरपूर सम्मान करते हैं और उसकी आंचल के छांव को दुनिया का स्वर्ग समझते हैं।
पांचो उंगुलिया एक समान नही होती श्रीमान . हर तरह के लोग होते हैं इस जहाँ में .शुक्रिया सिद्धार्थ जी
हटाएंमार्मिक चित्रण...सच है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि
हटाएंitna achchha likha hai aapne ki koi shabd hi nahi bacha kahne ko....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया स्मिता
हटाएंकिसी के बुढ़ापे में रुपयों की अमीरी और रिश्तों की गरीबी का सच्चाई भरा विवरण है
जवाब देंहटाएंये रचना हर एक तक पहुंचे और हर एक का हृदय परिवर्तन हो... ऐसी कामना करता हूँ
स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर रंगरूट
अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें
आभार।
शुक्रिया रोहितास जी
हटाएं