एक अदद कफ़न भी न मयस्सर हुआ सैलाब से

बक्सा भरा था जिसका कीमती रुपहले कपड़ो से 
एक अदद कफ़न भी न मयस्सर हुआ सैलाब से
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फूलो की तरह पाला/चाहा था जिस माँ ने 
बेटा माला तक न पहना पाया उस देह को
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कितने चाव से बनाया था बेटी की शादी का जोड़ा
हाथ कन्या दान से पहले प्रलय ने छुड़ाया हैं क्यों

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कहती थी मेरी उम्र भी तुम्हे लग जाए व्रत करती हूँ
सच करके आज अपने शब्दों को देखाया उसने

टिप्पणियाँ

  1. बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

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  2. उफ़्फ़...अत्यनात मार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इस दुर्दशा के जिम्मेदार हम खुद है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. आपकी यह रचना कल शनिवार (22 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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