एक टुकड़ा धूप



एक कोना 
अपना 
जिसमें 
छुपाये हैं 
मैंने 
ना जाने 
कितने
पुलकित क्षण
द्रवित मन
आंसुओ की बारिश
दोस्तों की साजिश
अकेलेपन की यादे
मिलन की बाते
,
,
,
आज वोह कोना
बगावत कर रहा हैं
उसे भी साथ
चाहिए
उसके भीतर की
सीलन को भी
एक टुकड़ा धूप चाहिए
नीलिमा शर्मा निविया





















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

टिप्पणियाँ

  1. अभी चाहत है धूप की ..... धूप के बाद फिर चाहत होगी बारिश की ,फिर शीत की फिर धूप की ..... चाहत का क्या
    मौसम प्रकृति बदलती है ..... मन की प्रकृति चाहत .....

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  2. उसे भी साथ
    चाहिए
    उसके भीतर की
    सीलन को भी
    एक टुकड़ा धूप चाहिए

    dil ko chhoo gai rachna

    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं

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